स्वदेशी स्वराज और सुचना तकनीकी..
सूचना तकनीकी.. उद्योग की शुरुआत पश्चिमी देशो के रक्षा क्षेत्र से हुई. इसीलिए वे दशकों तक इसके अग्रगण्य रहे. उल्लेखनीय है कि १९८० के उत्तरार्ध एवं १९९० के पूर्वार्ध में उन्होंने अपनी बीमार बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आर्थिक हितों के लिए विश्व बाज़ार के व्यक्तिगत और सामूहिक (विशेष रूप से औद्योगिक ) अनुप्रयोगों के लिए इसका दोहन शुरू किया. संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी देशों के अध्ययन और अनुभवों से देखा जा सकता है कि सिर्फ ४ सुचना तकनीकी उत्पादक क्षेत्रों , १७ सूचना आधारित (तकनीकी प्रायोजित) क्षेत्रों, २३ सूचना तकनीकी के अनुप्रयोगी औद्योगिक क्षेत्रों ने पिछले तीन दशकों से अमेरिकी और पश्चिमी देशों की अर्थव्यवस्था के प्रमुख हिस्से के रूप में योगदान किया है. यद्यपि सुचना तकनीकी का सीधे तौर पर हिस्सा सिर्फ ३० प्रतिशत का है लेकिन परोक्ष रूप से अमेरिकी अर्थव्यवस्था के विकास की गतिशीलता के ५० प्रतिशत का श्रेय सुचना प्रद्योगिकी को जाता है.
अमेरिका, चीन और भारत
आज जबकि पश्चिमी देशों की कंपनियों ने साफ्टवेयर उत्पादों तक ही अपना स्तर न रख के माइक्रोप्रोसेसर, चिप निर्माण (भले ही आउटसोर्सिंग से ) को अपने मुख्य व्यापर का हिस्सा बना लिया हो, लेकिन यहाँ पर यह हमारे पूर्वाकलन का विषय यह है कि हमारी नाभिकीय, अंतरिक्ष, आयुद्ध तंत्रों और संचार तंत्रों की आवश्यकताओं की निर्भरता आज भी पश्चिम पर ही निर्भर है. यद्यपि वे देश रक्षा तंत्र के तकनीकी कौशल में दो पीढ़ी आगे की सामर्थ्य रखते हों लेकिन उनकी निगरानी इस प्रकार के सभी सौदों पर बराबर होती है. इसीलिए इन देशों ने आज तक सिर्फ व्यापारिक और व्यक्तिगत प्रयोग के तकनीकी उपकरणों (जैसे लैपटॉप, पर्सनल कंप्यूटर, मोबाइल फ़ोन आदि.. ) की तकनीकों का ही हस्तांतरण किया है. सहभाजी तकनीकों (हार्डवेयर और साफ्टवेयर ) का अपनी भाषा में विकास करके सर्वश्रेष्ठ उपयोग सुनिश्चित किया है. चीन ने अपने सभी जरुरी औद्योगिक क्षेत्रों में हार्डवेयर और साफ्टवेयर के अनुप्रयोगों से स्वदेशी विकास को बढाया है जबकि भारत आज भी सिर्फ सेवा क्षेत्रों के विकास तक सिमित रहा है, पिछले एक दशक से हमारी सशक्त उपस्थिति और सर्वश्रेष्ठ साफ्टवेयर निर्यातक होने के दावे का बावजूद हम अपने सर्वश्रेष्ट संष्ठानो आईआईटी और आईआईएम और दुसरे इंजीनियरिंग और प्रोद्योगिकी संस्थानों के विद्यार्थियों की मेधा का प्रयोग नहीं कर सके हैं. भारतीय सूचना तकनीकी की कंपनियों की सेवाओं से पश्चिमी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का ही ज्यादा फायदा हुआ है. इसके अतिरिक्त कुकुरमुत्ते की तरह प्रस्तावित विशेष आर्थिक क्षेत्रों (अंग्रेजी में “सेज” मतलब “किसानो के लिए काँटों की सेज” ) की आवश्यकता इससे पहले कभी महसूस नहीं की गयी. स्पष्ट है की यह बेशकीमती उपजाऊ कृषि क्षेत्रों या तटवर्ती क्षेत्रों की जमीनों को किसानो की सहमति अथवा असहमति के बावजूद बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथों में सौंपना भर ही है. .
बहुराष्ट्रीय कंपनियों और विशेष आर्थिक क्षेत्रों के पीछे देखें तो इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों में कार्य करने वाले लोग इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए बहुत निष्ठावान होते हैं. इसीलिए अपने उत्पादों के लिए उन्हें बहुत कम प्रतिस्पर्धा से ही एक बहुत बड़ा उपभोक्ता समूह मिल जाता है. इनमे कार्य के दौरान जितने भी पेटेंट होते हैं वो उन्ही कंपनियों की बौद्धिक पूंजी माने जाते हैं. हम इन्ही कंपनियों के साफ्टवेयर में विशेषज्ञता हासिल करते हैं और अपने आरामदायक जीवन के लिए इन्ही कंपनियों का यशगान करते हुए गौरवान्वित महसूस करते हैं.
विचारशील पाठकों से अनुरोध करना चाहूँगा की वे बताएं कि पिछले डेढ़ दशकों से ज्यादा समय से चल रहे इस सुचना प्रौद्योगिकी और उच्च तकनीकी दक्षता के साफ्टवेयर निर्यात से देश के आखिरी आदमी को क्या फायदा हुआ?
…क्या यह कि आज देश के ज्यादातर लोगों के पास एक या दो-दो मोबाइल फ़ोन हैं..(इसमें भी हमने इन्ही बहुराष्ट्रीय कंपनियों को ही प्रत्यक्षा लाभ दिया है)??
… क्या हमने कोई ऐसा साफ्टवेयर उत्पाद दिया है जिसे हम स्वदेशीय गौरव से अन्तराष्ट्रीय बाज़ार कि प्रतिस्पर्धा में में रख सकें?
…क्या ये तथाकथित विकास भारतवर्ष की किसी मूल समस्या के समाधान के लिए उपयोग हो पाया है?
…हम इन उत्पादों का प्रयोग रक्षा प्रतिष्ठानों, बैंकों और स्टाक एक्सचेंज तक में करते हैं. क्या विदेशों में विकसित या उनकी तकनीकी पर आधारित साफ्टवेयर अथवा हार्डवेयर पर हमे ऐसे आँख बंद करके भरोसा करना चाहिए?
…यहाँ यह उल्लेख करना आवश्यक हो जाता है की इन देशों में खुले तौर पर वाइरस और दूसरी खतरनाक तकनीकियाँ विकसित की जाती रहती हैं.
वास्तविकता :
इन कंपनियों को सेवाएँ देकर हम विदेशी मुद्रा का लाभ प्राप्त कर तो रहे हैं लेकिन इस नगण्य लाभा के लिए हम क्या कीमत चूका रहे हैं इसका भी हमे ज्ञान होना चाहिए? एक स्वतंत्र रिपोर्ट के अनुसार २००९-२०१९ के बीच सुचना तकनीकी क्षेत्र में रोजगार प्राप्त आबादी के पांच गुना लोगों को वस्त्र उद्योग के रोजगार से हाथ धोना पड़ेगा. सुचना तकनीकी के शुरूआती दौर के आय वृद्धि ने आवश्यक वस्तुओं के दामो की तेजी में जो आग लगाई वो अभी तक बुझने का नाम नहीं ले रही है. इसका सबसे बड़ा असर माध्यम आय वर्ग पर पड़ा जो की बढती महंगाई की वजह से कंगाली के की कगार प् पहुँच गया. आज जबकि देश के आम आदमी की इस परिस्थिति के लिए देश के कृषि मंत्री संसद में आम आदमी की इस दुर्दशा के लिए इश्वर को जिम्मेदार ठहराते हैं.. इसे अदूरदर्शिता कहेंगे या मानसिक विपन्नता या जनसामान्य की नगण्यता … जो भी हो…क्या यह परिस्थिति देश के लिए शर्मनाक नहीं है.
इस टैक्स छुट, सस्ती दी गयी जमीनों और सबसे सस्ते श्रमिकों की उपलब्धता ने सूचना तकनीकी के संस्थागत और व्यक्तिगत लाभों का दायरा लगभग अनंत तक तो पहुंचा दिया लेकिन क्या इनसे देश की अर्थव्यवस्था को मिल रहे शुन्य लाभ को पुनरीक्षित नहीं किया जाना चाहिए? न्यूनतम वैकल्पिक कर को १८ प्रतिशत से बढ़ा के १८.५ प्रतिशत करने से इस उद्योग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, प्रत्यक्ष कर कोड में धरा 10 A और 10B को समाप्त करने से आईटी कंपनियों पर ०.५ प्रतिशत से २.५ प्रतिशत का बोझ बढेगा. निश्चित रूप से इस कराधान से कम से कमतर होती व्यक्तिगत आय पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए.
ऐसे समय में जब आईटी नौकरियों की कमी के चलते कितने ही कालेजों को आईटी विभागों को बंद करना पड़ा है और कितने ही बंदी के कगार पर हैं, सूचना तकनीकी कंपनियों के लिए यह आवश्यक हो जाता है की वे इस व्यापार के दुसरे विकल्पों को प्राथमिकता में लायें, स्वदेशी प्रतिरूप विकसित करें. ऐसा करने से न केवल देश की सुरक्षा का स्तर मजबूत होगा बल्कि नौकरियों के का सृजन और लोक कल्याण के साथ देश का समुचित विकास सुनिश्चित हो सकेगा…
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