Menu
blogid : 2541 postid : 71

विश्व परिदृश्य षड्यंत्रों का दुष्चक्र और भारतीय युवा की निष्क्रियता

राकेश मिश्र कानपुर
राकेश मिश्र कानपुर
  • 361 Posts
  • 196 Comments

आप जानते हैं की देश की राजनैतिक व्यवस्था के लिए बने दल देश के लिए दलदल क्यों हो गए? शायद इसलिए की हमने (अल्पज्ञानी सामान्य जनता ) उनको परखने की कोई कसौटी निर्धारित नहीं की, नेतृत्व प्रतिभा विकास किसी की प्राथमिकता में नहीं रहे. अल्पज्ञानी अंधों में काने राजा आते रहे, हम लगभग अधिनायकवाद में ही जीते रहे… आज भी हम किसी महानायक की उम्मीद लिए हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं. कभी वह महानायक अन्ना में, कभी बाबा रामदेव में, कभी किसी और में… वास्तविकता शायद इससे कोसों दूर है. शायद इतनी कडवी है की हम देखना नहीं चाहते या हमारी मानसिक विपन्नता हमे लगभग विचारशून्यता  तक ले आई है. यद्यपि यह सब विदेशी षड्यंत्रों के हिस्से के रूप में झेलना पद रहा है लेकिन देश की जनता शायद यह मानने को तैयार हो सके कि देश कि इस हालत का रिमोट विदेशों में कहीं किसी के पास रखा है.

यह मान के चलिए कि देश के भ्रष्टाचार, घपलों घोटालों कि चाबी जैसे  दुनिया के सबसे ज्यादा योग्य प्रधानमंत्री का रिमोट सोनिया के पास है.  वैसे ही सोनिया का रिमोट कहीं दूर विदेश में महाशक्तिमान आकाओं के पास है.

दुनिया के सबसे योग्य प्रधानमंत्री ने विश्व बैंक की सेवा करके कुछ किया हो या न किया हो देश को उधार लेना और खर्च करके गर्व करना जरुर सिखा दिया. शायद इसी काबिलियत के लिए अमेरिका ने हिंदुस्तान के सबसे नपुंसक प्रधानमंत्री को पहले  वित्त मंत्री और फिर दो बार प्रधान मंत्री बना के अपने सबसे महत्वपूर्ण एजेंट के तौर पर भारत को खोखला करने का सुनहरा मौका दिया है. नतीजा कोई भी बहुराष्ट्रीय कंपनी कभी घाटे में नहीं रही.. देश का माध्यम आय वर्ग गरीब और गरीब आय वर्ग कंगाली तक पहुँच गया. यह सारा प्रकरण इतने सुनियोजित तरीके से हुआ कि अल्पज्ञानी निरीह जनता को  समझ में ही नहीं आया. शायद इसीलिए आज बेवकूफ है भारत की अल्पज्ञानी जनता उधार की किताब  (Education System ) पढ़ती है, उधार के कपडे (Liberalisation ,media and fashion ) पहनती है, उधार के विचारों (marxism , darvinism and adam smith modern economics ) को आदर्श मानती है, उधार का अर्थशास्त्र (globalisation and modern economics,insurance ,banking finance IMF and world bank) लेकर कहती है की हम विकास शील देश हैं.  उधार का नतीजे (statstics by foreign agencies) लेकर गर्व करती है. इससे बड़ा मजाक क्या होगा की  उधार के कानून (example societies registration act -1860 created by brtitish ) से पूरा देश चलता है.  उसी उधार की कहानी (media , sense of development ) से देश के राजनितिक दल जनता को बेवकूफ बनाते हैं, सरकारें बनाते हैं. उसके बाद जब समस्याए ज्यादा बड़ी हो जाती और कोई दुश्मन नज़र नहीं आता तो जनता सरकार तंत्र को और सरकार किसी हलाल किये जा सकने वाले बकरे को कोसते हैं.

उदारहरण दे तौर पर मै  आपको बताता हूँ, मै और मेरे कुछ मित्र जो कानपूर के प्रतिष्ठित उद्योगों के मालिक हैं विचारक है एक  सामाजिक कार्यकर्ता भी..हम लोगों ने एक सामाजिक संस्था (प्रेरणा ) के माध्यम से शहर के २५ बीमार स्कूलों को गोद लेकर उनमे सुधार कार्य शुरू किये, बताने की आवश्यकता नहीं की इन सरकारी स्कूलों में अति निर्धन या निर्धन वर्ग के बच्चे पढ़ते हैं, , उन बच्चों से नियमित वार्तालाप करते हैं और उनके माता-पिता से भी, इन स्कुलूँ में हम निश्चित मानदेय के शिक्षक नियुक्त करते हैं और उनके वेतन,  विद्यालय के प्रबंधन और दुसरे खर्चों को अपने स्तर पर वहां करते हैं क्योंकि ये विद्यालय सरकारी उपेक्षा के चलते इस हालत में पहुंचे हैं. बच्चे और उनके माता-पिता हमारा सम्मान करते हैं और हमारे अनुरूप सही गलत का फैसला  करते हैं. अब   मान लीजिये की हम सुचारू रुप  से इसका सञ्चालन करते हैं और कल को सर्कार को एक प्रस्ताव देते हैं की इन विद्यालयों का विनिवेश किया जाए (privatisation) जनता हमारे साथ होगी और सरकार के पास इसको माने के सिवा कोई रास्ता नहीं होगा (और जो नहीं माने उनके लिए हम पैसा और शक्ति का प्रयोग कर सकते हैं.). अब यदि हम इन स्कूलों को दुसरे तरीके से चलाने लगें  अपनी नियत बदल दें और सर्व शिक्षा अभियान के अनुरूप काम न करके जनता से मोती फीस वसूलने लगें तो क्या होगा? इसके साथ ही अगर शहर में १००-२०० करोड़ निवेश करके कुछ औद्योगिक गतिविधियों को संचालित करें तो निश्चित रूप से जन समर्थन हमारे साथ होगा ही.. मीडिया को विज्ञापन देने और पैसा खिला के अपने साथ करने में कितनी देर लगेगी…इस प्रकार से शासन पर कर्पोक्रेसी (corpocracy)  हावी हो जाती है. इस पुरे  देश की यही हालत है…. जनता को यही नहीं पता सही क्या है और गलत क्या है?

अब एक बार सोचिये की ये अंग्रेजी में लिखे करक किसी एक जगह से शुरू हो रहे हों तो वे देश की क्या क्या हालत कर सकते हैं? मिस्र जैसी क्रांति तो एक नमूना भर है जो कितनी जल्दी और आसानी से करवाई जा सकती है..   नेता और राजनीतिज्ञ तो थोड़े से ही पैसों में पालतू बनाये जा सकते हैं. उनके बेवकूफी भरे मुद्दे हिन्दुवाद, मुस्लिमवाद तो सिर्फ इसी अल्पज्ञानी और धर्म भीरु जनता को भरमाने का जुगाड़ भर है. पूंजीवादी व्यवस्था जब रिश्वत लेकर भगवान से आशीर्वाद दिलाने लगे तो समझिये की जनमानस की तर्कशक्ति समाप्त हो गयी है या यूँ कहिये की धर्मभीरुता में उससे किसी भी अपराध को अंजाम दिया जा सकता है. मुझ बेवकूफ के मन में यह सवाल पैदा होना लाजिमी है की आर्थिक उदारीकरण के बाद से ही यह घपले-घोटाले जैसे महान कार्य होने क्यों शुरू हुए.  और अगर आप कहने लगेंगे की जैसे-जैसे पैसा आना शुरू हुआ तो यह बढ़ना लाजिमी है तो मेरा यह कहना की “अगर रावण जैसे किसी दुश्मन को मारना है तो पहले तो उसका पता करिए फिर उसकी कमजोर शक्ति का पता करिए. (जैसे रावण की नाभि) फिर उसको मारने के उपाय  खोजे जायेंगे. ” कितना गलत है. अब खुद को या किसी नेता को या किसी गरीब को दोषी ठहरा के काहे अपने-अपने कर्त्तव्य पूरे करने में हैं आप लोग?

अब आप बताओ की गाँव का गरीब अंगूठा लगता है और उसका हिस्सा ऊपर वाला खाता है तो दोषी कौन? मेरे ख्याल  से निरक्षरता, अब अनपढ़ होगा तो रिपोर्ट क्या लिखवाएगा.. थाने और कोर्ट के चक्कर उसके बाद लगेंगे.और उसकी निरक्षरता क्यों जरुरी है… जिससे कि उसके अल्पज्ञान का फायदा उठा के उसके खेतों का अधिग्रहण करके पूंजीपति आकाओं को दिया जा सके. उसके आस-पास कि खानों के पट्टे किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी को दिए जाएँ तो वह प्रत्यक्ष विरोध करने के बजाये  इन माननीयों द्वारा बताया हुआ विकास का मतलब समझ सके.

यकीन मानिये जनमानस के अल्पज्ञान और पश्चिमी आकाओं के लिए बनायीं हुई सरकारी नीतियों कि वजह से देश का यह आलम है कि देश के बेरोजगारों का एक बहुत बड़ा वर्ग लगभग निष्क्रिय हो गया है. किसी प्रकट समस्या का विरोध करने के लिए उसके लिए कतई समय नहीं है, भले ही वह अपने दिन का पूरा एक तिहाई (8 घंटे ) क्रिकेट देखने में बिता दे. अच्छा एक बात और बताते चलें कि बेतहाशा बेरोजगारी के इस दौर में देश के इसी युवा वर्ग को निष्क्रिय और नाकाम करने के लिए मल्टी लेवल मार्केटिंग कंपनियों (एक छलावा कि आप घर बैठे रातों रात अमीर बन जायेंगे..) कि एक फ़ौज भी तैयार करके भेजी  गयी है. इस फ़ौज के सिपाही पहले विदेशी नटवर लाल हुआ करते थे लेकिन अब उनकी जिम्मेदारी देशी नटवर लालों ने उठा ली है.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh