गांधीजी की सेक्स लाइफ: विरोधाभासी ऐतिहासिक विवेचन और विश्व राजनितिक परिदृश्य
जेड एडम्स और जोसेफ की विरोधाभासी कृतियों के विषय में चिंतन करने के पूर्व इस विवेचन की आवश्यकता है की जेड एडम्स और जोसेफ का अपना चरित्र, इतिहास और विश्वसनीयता का आधार क्या है…और जब हम इन तथ्यों के सत्य को जान लेते हैं तो फिर सत्य का स्रोत चाहे जो भी हो लेकिन गांधीजी के सेक्स मेनियक होने और देश के बंटवारे में कोई सम्बन्ध हो सकता है या नहीं.. यह विचारणीय है.. कांग्रेस के अन्तरंग सभा में सरदार पटेल से पराजित होने के बाद अगर नेहरु ने इन तथ्यों का सहारा लेकर गाँधी को ब्लेकमेल करके देश के विभाजन और अपने प्रधानमंत्री होने का दबाव बनाया हो क्या यह आशंका विचारणीय नहीं है? यदि हम यह माने की भारत की स्वतंत्रता गाँधी के जीवन का उद्देश्य रही हो तो गाँधी अपने जीवन उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए नेहरु की ब्लेकमेलिंग के सामने झुक गए हों क्या यह विचारणीय नहीं है? क्या अपने व्यक्तिगत पद लोभ में नेहरु ने गाँधी से यह सौदा किया था? यदि हम दोनों लोगों के कामुक चरित्र को सामान रूप से देखें और भारतीय जनमानस पर उसके प्रभाव और प्रतिक्रिया के सन्दर्भ में इसका अवलोकन करें तो क्या आश्चर्य कि इस विवेचन में हमे गाँधी, नेहरु, गोडसे, हिन्दू महासभा और कांग्रेस के चरित्र की सत्यता भी उजागर हो सके….शायद हमे अतीत से वर्तमान तक एक निरपेक्ष चिंतन और विवेचन की आवश्यकता है…
विरोधाभासी पुस्तकें और विश्व राजनितिक परिदृश्य ..
भारत के राष्ट्रपिता
गांधीजी के जीवन पर हो रहे विवेचनो का आधार क्या है? यह किसके उद्देश्यों के प्रभाव में हो रहे हैं.? यदि इन विवेचनो से पुरे देश के मनोभावों पर प्रभाव पड़ता है तो यह निहायत जरुरी हो जाता है की हम इसका सम्पूर्ण विवेचन करें कि जेड एडम्स या जोसेफ लेलिवेल्ड या कोई और किसकी सहमती या संस्तुति या किसके प्रभाव में इस प्रकार के विवेचनों से देश कि राजनैतिक आर्थिक और सामरिक अस्थिरता हो हवा दे रहे हैं. क्या इसके परोक्ष में ब्रिटेन या अमेरिका के हित हैं या लेखक कि स्वतंत्र मानसिक चेतना.? क्या यह अनिवासी भारतीयों के स्वदेश-प्रेम के मनोभावों को विचलित करने का प्रयास है या विश्व राजनैतिक परिदृश्य में भारतीय प्रतिनिधित्व कि गरिमा को ठेस पहुँचाने अथवा नीचा दिखने का प्रयास?
या यह भारतीय समग्रता को कमजोर करके आर्थिक, राजनैतिक और सामरिक फायदे उठाने या फिर से गुलामी की जंजीरों में जकड़ने की कूटनीतिक साजिश का एक हिस्सा है?
अंग्रेजों और अंग्रेजी मानसिकता के भारतीय नेतृत्व द्वारा क्रमिक रूप से किये गए इस प्रकार के कुकृत्यों का एक विवरण शायद इस प्रकार के ऐतिहासिक विवेचनो का आधार प्रदान कर सके..
स्वतंत्रता से पूर्व…
1. हमारे वेदों और विशिष्ट वैज्ञानिक कृतियों को पौराणिक कथा या कपोल कल्पित रूप से प्रचारित करना.. मैक्समुलर जैसे बेवकूफों ने जीवन के सर्वश्रेष्ठ अध्ययन को वेदों को निराधार बताया है .
2. भारत देश की सांस्कृतिक विरासतों को अन्धविश्वास बता के निरंतर अवमूल्यन..
3. भारत देश में अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली का अवस्थापन
4. भारत देश में जातीय और वर्ग विभेद के लिए जाती आधारित जनगणना
5. भारत विभाजन के लिए मुस्लिम-हिन्दू दंगे.
स्वतंत्रता के पश्चात्…
6. ग्लोबलाइजेशन, विनिवेश, और उदारीकरण की विकास के चरम के रूप में स्वीकृति.. यह दुखद है की आज़ादी के बाद भी बिना सम्यक और निरपेक्ष विवेचन के भारतीय नेतृत्व और जनमानस ने तहे दिल से स्वीकार भी किया है.. आज स्थिति यह है की देश की संपर्क भाषा में अंग्रेजी की प्रधानता है. लोगों की स्वतंत्र सोच कुंद होने का नतीजा … लघु और सूक्ष्म व्यापारिक उद्योगों में ५०% से अधिक गिरावट.. बेरोजगारी में बढ़ोत्तरी, हताशा.
7. ग्लोबलाइजेशन, विनिवेश, और उदारीकरण द्वारा भ्रष्टाचार का संवर्धन… आज की स्थिति यह है की देश का नेतृत्व अपने व्यक्तिगत हितलाभ के लिए देश का सौदा करने में भी नहीं हिचकेगा.
8. ग्लोबलाइजेशन, विनिवेश, और उदारीकरण की आड़ में मीडिया द्वारा भारतीय जनमानस को कुंद करने का प्रयास…. मीडिया के बिकाऊ होने और उसमे प्रसारित होने वाले सन्दर्भों से हमारा पश्चिम की और झुकाव ज्यादा बढ़ा है.
9. भारत देश के तटीय क्षेत्रों में विदेशी कंपनियों (ध्यान रहे ये ईस्ट इंडिया कम्पनी की सहायक कम्पनियाँ ही हैं..) द्वारा लाखों हेक्टेयर जमीनों की खरीद और धर्मान्तरण की तेज प्रक्रिया… भारत में जल माध्यम से सामरिक ठिकाने बनाने के लिए और क्या चाहिए..
10. देश में विदेशी विश्वविद्यालयों की स्थापना के लिए कानून..शिक्षा का उदारीकरण.
11. देश के नागरिकों और ग्रामीण क्षेत्रों की आत्मनिर्भरता कुंद करने के लिए मनरेगा (MNREGA) जैसे कार्यक्रमों को बढ़ावा देना…(ध्यान रहे पिछले डेढ़ दशकों में कुल डेढ़ करोड़ लोगों ने कृषि आधारित आजीविका से पलायन किया है.) सरकारों ने कृषि आधारित आयात कई गुना ज्यादा बढाया है. ध्यान रहे पिछले एक दशक में २ लाख से अधिक स्वाभिमानी किसानो ने आत्महत्या की है.
१2. अनियंत्रित शहरीकरण जिनमे एमार एमजीएफ जैसे ईस्ट इंडिया कंपनी की सहायक कम्पमियों की हिस्सेदारी बहुत चिंतनीय है.. इसी शहरीकरण से कृषि योग्य भूमि में २०% से अधिक कमी आई है…
भगवान् करे कि मेरा अंदेशा निराधार हो… लेकिन ये संपूर्ण विवेचन तथ्यपरक है और शायद अति गंभीर चेतावनी जैसा है…
एक ही अपेक्षा है…
तेरा वैभव अमर रहे माँ..हम दिन चार रहे न रहे..!!
कुछ सन्दर्भों का उल्लेख निचे दिया है..
Read Comments