Menu
blogid : 2541 postid : 373

मेरा देश :मेरा प्रयास

राकेश मिश्र कानपुर
राकेश मिश्र कानपुर
  • 361 Posts
  • 196 Comments

साइकिल… सर्वश्रेष्ठ विकल्प

 

साइकिल एक सर्व सुलभ और सर्वसुगम  साधन है… और यह गौरव का विषय है कि भारत  दुनिया में दुसरा सबसे बड़ा साइकिल उत्पादक देश है. देश की लगभग  40 % आबादी साइकिल से चलती है..   इसके महत्व को समझते हुये पुणे के नगरीय सड़क यातायात  में “विशेष साइकिल लेन” बनाये जा रहे हैं.

भारत और चीन की जनसँख्या  (जो कुल मिला के  विश्व आबादी का ३७ %  हैं), के ५० % लोग रोजमर्रा की यातायात जरूरतें   पदचालन और साइक्लिंग से पूरी  करते हैं.. यद्यपि साइक्लिंग सर्वाधिक सस्ती और पर्यावरण के लिए सर्वाधिक उपयुक्त यातायात का साधन है तथापि भारत में इसकी उपेक्षा देश को एक बड़े खतरे  के मुहाने पर ले आई है. जीवाश्म इंधनों के अंधाधुंध प्रयोग से तमाम तरह के वायु प्रदूषण और उससे होने वाले रोग,  ग्रीन हाउस प्रभाव, सुनामी, और दूसरी प्राकृतिक आपदाओं को हम खुला  निमंत्रण ही  देते हैं. सरकारें  इस उपेक्षा में आम आदमी से  दो कदम आगे ही हैं. नीतियाँ बनाते हुये वे कभी इसे प्राथमिकता में नहीं ले रहे हैं या नहीं रख पा रहे हैं. यह गंभीर विषय है. शायद इसमें स्वचालित वाहन बाज़ारवाद  का हस्तक्षेप ही है जिसकी वजह से आज तक इस दिशा में कोई ठोस प्रयास तक नहीं हुआ. “यातायात में साइक्लिंग” से सम्बंधित  कोई संस्थागत प्रयास सरकार की तरफ से नहीं दिखाई देता और यदि कहीं होगा  भी तो वह “ऊँट के मुह में जीरा” जैसा ही है. इसके चलते  स्थानीय प्रशासनिक तंत्र इस मामले में इतने लाचार हैं की वे साइक्लिंग के लिए आधारभूत संरचना, संस्थागत प्रोत्साहन, वैधानिक अधिकार और दुसरे आवश्यक सन्दर्भों के बारे में कोई प्रयास तक नहीं कर पा रहे हैं.

यानि की सरकार और सरकारी  नीतियाँ सिर्फ और सिर्फ बाजारवादी व्यवस्था को ही आधार मान के चल रही हैं.  जब राष्ट्रीय सन्दर्भों में हर एक पहलु में परिवर्तन की बहस छिड चुकी है तो यह अभिदृष्टि या विचारशून्यता नहीं है तो और क्या है जो इस प्रकार के स्थायी समाधान को नज़र अंदाज़ करके हम आगे बढे जा रहे हैं. क्या अन्नाओं और बाबाओं को को इस दिशा में गंभीर चिंतन की  आवश्यकता नहीं है? क्या यह मुद्दा देश की   पर्यावरण और महंगाई कि मार झेल रही बहुसंख्यक आबादी का मुद्दा नहीं होना चाहिए?

 

न तेल न तेल कि धार- साइकिल  बनाओ आम आदमी का हथियार!!

 

 

कानपूर के  दूरदर्शी विचारकों की शुरुआत को गंभीरता से लिया जाना देश की आवश्यकता है…. एक दूरदर्शी वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद तिवारी जो कि दैनिक जागरण के पूर्व संपादक रहे हैं, गंभीरता से कहते हैं  “निश्चय ही इस मुद्दे पर एक बहुत बड़े जन आन्दोलन कि आवश्यकता है जिससे देश के नागरिक जीवन को स्थायित्व और उपयोगिता मिलेगी.”  उनका यह कहना “जब से पेट्रोल के दाम ५ रुपए बढे मैंने कार खड़ी कर दी ,बाइक थाम ली है. सुना है फिर बढ़ने वाले हैं दाम. मैं आज बाइस्किल के दाम पूँछ आया हूँ .” देश कि महंगाई की मार से आहत आम जनता की आवाज जैसा लगता है…

पियूष रंजन कहते हैं कि आम आदमी को साइकिल के सहारे भी सरकार से लड़ना होगा. उन्हें विश्वास है  “महंगाई कि इस मार से जूझते हुई आम जनता के लिए साइकिल एक बहुत बड़ा सहारा और विश्वास भी बन सकती है”.  सोशल नेटवर्किंग साईट फेसबुक पर चुटकी लेते हुए राजेंद्र पंडित कहते हैं “साइकिल से दो फायदे रहेंगे एक्सरसाइज़ भी हो जायेगी ” यह स्वीकारोक्ति है साइकिल से होने वाले स्वास्थ्य की. शहर के ही अमित बाजपेई कहते हैं ” लेट्स गो फॉर बाइसिकिल मूवमेंट.”

 

खालिस या क्रूर पूंजीवादी सोच के खिलाफ लड़ाई भी  बन सकती है साइकिलिंग:

“आज के इस मीडिया की चकाचौंध के दौर में इस प्रकार की शुरुआतों को सबसे बड़ा खतरा है, पूंजी की गुलाम सोच से”  अरविन्द त्रिपाठी कहते हैं “देश अगर भावनात्मकता पर आधारित इकाई है तो उस भावनात्मकता का सशक्तिकरण इस प्रकार के आन्दोलनों से हो सकता है.”   उग्र गांधीवादी पर्यावरणविद  आँखों में चमक के साथ कहते हैं “यह आन्दोलन महानगरीय आबादी कि सबसे बड़ी जरुरत है”. वे बताते हैं “देश के सभी भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों ने इसको सभी संस्थानों में गंभीरता से लागू किया है. किसी भी संसथान में जाकर देखिये विद्यार्थी और प्रोफ़ेसर सभी संस्थान के अन्दर परिवहन के प्रमुख साधन के तौर पर साइकिल का ही प्रयोग करते हैं” .

प्रमोद तिवारी का अंदेशा आज की  माध्यम और उच्च आय वर्ग की उस मानसिकता से है जो कि वाहनों के स्वामित्व को स्टेटस सिम्बल मानता है. क्या वे भी राष्ट्र निर्माण की ऐसी  शुरुआतों को उतनी शिद्दत से लेंगे? या उनसे सिर्फ इतनी उम्मीद करना काफी होगा कि वे रेड लाइटों पर ज्यादा समय लगे तो अपनी कार का इंजन बंद कर दें. और यदि संभव हो तो मोटर गाड़ियों कि भागीदारी से इंधन कि बचत और समरसता कि शुरुआत करें.

कहते हैं कि बूंद-बूंद से घड़ा भरता है.

नगर के सन्दर्भों में सामाजिक कार्यकर्ता और पेशे से इंजिनीयर प्रनोति गुप्ता  स्कूलों  की बसों और  स्कूली रिक्शों के जाम में फंसने और ऐसे में बच्चों की दुर्दशा के लिए भी इसकी जरुरत बताती हैं.

कुलदीप मिश्र कहते हैं कि समाजवादी पार्टी जैसे राष्ट्रीय दल जिनका चुनाव चिह्न ही साइकिल है वे इस प्रकार की पहल क्यों नहीं करते.

आइये एक नज़र डालते हैं कि एक प्रयास से नगर के लोगों को कितने फायदे होंगे…

-पहला सुख निरोगी काया.. १०-१५ किमी की साइक्लिंग स्वास्थ्य लाभ के लिए निस्संदेह सर्वोत्तम है.

महंगाई की मार झेल रहे लोगों को एक स्थायी विकल्प

-सामाजिक समरसता को बढ़ावा मिल सकता है.

-ध्वनि प्रदुषण से निजात मिलेगी.

-वायु प्रदुषण जो कि सांस के गंभीर रोगों का कारण है उसकी रोकथाम.

-यातायात (ट्रैफिक ) समस्या से बचने के लिए स्थायी साइक्लिंग लेन का निर्माण हो जाने से वाहनों से लगने वाला जाम रोका जा सकेगा.

-यदि एक बहुत बड़ा जनमानस इसे अपना मुद्दा मान के अपनाता है तो देश के  आर्थिक स्वावलंबन की दिशा में एक बहुत ठोस और कारगर कदम होगा.

वरिष्ठ सामाजिक  कार्यकर्ता कैप्टेन सुरेश त्रिपाठी का कानपुर में साइकिल के लिए प्रयास इसी श्रंखला में एक ठोस कदम है.. जिसमे उन्होंने और उनके स्वयंसेवकों ने “बाईकाथन” नाम की एक काफी बड़ी प्रतियोगिता करवाई थी जिसमे शहर के कार्पोरेट और विद्यार्थी वर्ग ने बहुत पसंद किया था.

कानपुर के  क्रांतिकारियों ने तो एक पहल शुरू कर ही दी है.. क्यों न आप और मै व्यक्तिगत स्तर पर एक श्रेष्ठ शुरुआत करें…

मेरा देश मेरा प्रयास:

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh