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देश की आधी आबादी को जरुरी मानसिक पोषण नहीं मिला …इसी मानसिक कुपोषण की वजह से शायद आज की सांवली स्त्री /लड़की स्वयं को कुरूप और कुरूपता को सबसे बड़ा अभिशाप मानती है और गोरे रंग को सबसे बड़ा हथियार मानती हैं…
पश्चिमी मीडिया ने “फेयर न लवली ” को सबसे बड़े वरदान के तौर पर पेश किया है …. इससे आम (गरीब ) भारतीय लड़कियों (जो आर्थिक तौर पर उतनी समृद्ध नहीं हैं की रूप सज्जा पर अनाप -शनाप खर्च कर सके ) में हीन भावना को बाल मिला है … देश में महिला विदुशियाँ उँगलियों पर गिनी जा सकती हैं लेकिन बॉलीवुड , टोलीवुड , भोजीवुड .. और दूरदर्शन के कितने ही प्रायोजित कार्यक्रमों में निहायत चमचमाती हुई सैकड़ों लड़कियों को देखा जा सकता है … क्या यही वास्तविक महिला सशक्तिकरण है ?
आर्थिक उदारीकरण के बाद स्थिति “कोढ़ में खाज ” वाली हो चली है … कंडोम और आई -पिल्स के विज्ञापन तो देश की हर सड़क , चौराहे और मेडिकल स्टोर पर तंग गए हैं , साइबर युद्ध, इन्टरनेट पोर्नोग्राफी , सिनेमा और दूरदर्शन की सेंसरशिप को विदेशी चश्मे से देखा जाने लगा है और कभी -कभी तो नग्नता न दिखा पाने को स्वतंत्र अभिव्यक्ति का हनन तक करार दिया जाने लगा है एक सम्मानित पर्त्रिका तहलका ने नग्नता की इच्छा जताने वाली एक अभिनेत्री (पूनम पाण्डेय ) का महिमामंडन कुछ इसी प्रकार से किया है…. क्या यह नग्नता नारी आज़ादी का प्रतिक बनने वाली है?
आज भारतीय सामाजिकता के अधकचरे ज्ञान ने भारतीय मानस को इस कदर भ्रम में डाल दिया है कि सही क्या है वो उसे दकियानूसी मानने लगा है और जो गलत है वह प्रेरक लगने लगा है .. इन्ही प्रभावों के चलते आज वेश्यावृत्ति कि वैधानिकता के लिए दर्जनों समूह झंडा लिए घूमते हैं . क्या वे भारतीय सन्दर्भ में वेश्यावृत्ति के आर्थिक सामाजिक स्वरुप के भारतीय जनमानस पर होने वाले प्रभाव के बारे में कोई अध्ययन या विशेषज्ञता रखते हैं .. शायद नहीं! या नाम मात्र …
आपको पश्चिमी प्रेमालाप दिवस (valentine day) विशेष रूप से प्रभावित करते हैं और आपकी अल्पज्ञान उसके दूरगामी प्रभावों अनदेखा करता है..
हमारे अतुल्य भारत में हमने ही दुनिया में सबसे पहले “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते , रमन्ते तत्र देवता ” का सिद्धांत दिया “दुर्गा सप्तशती ” के रूप में हमने सर्वशक्तिमान नारी की आराधना शुरू की और आज भी करते हैं . लेकिन यह सोचने का विषय है की आधी आबादी के लिए बने उद्देश्य सिर्फ मूर्तिपूजा तक क्यों सिमट गए ? मानवीय त्रिगुनो (रज , सत और तम ) में देश काल और परिस्थितियों में जो प्रधान हो उसी का प्रतिरूपण सामाजिक दशा को प्रदर्शित करता है . ये त्रिगुण आर्थिक-सामाजिक कारकों से प्रेरित या प्रभावित होते हैं (आधुनिक मनोविज्ञान में प्रेरण और उद्दीपन का सिद्धांत )…अंग्रेजों के मानसपुत्रों द्वारा लिखा इतिहास भारतीय संस्कृति को नारी-शक्ति का सबसे बड़ा दुश्मन बताता है. देवदासी प्रथा , सती -प्रथा , बाल -विवाह जैसे अत्याचारी कुप्रथाएं होने के पीछे क्या तर्क देता है … इन तर्कों पर विश्वास करके हम अपनी सांस्कृतिक विरासत का अवमूल्यन करते चले आ रहे हैं ..
जिस देश की आत्मा ही स्त्री को सर्वशक्तिमान इश्वर स्वरुप मानती रही हो … यदि आज वो देश इस दशा में पहुँच जाये तो यह मनुष्य की प्राकृतिक स्वाभाव और देश की चेतना किसी के अनुरूप नहीं है … हम जिन मूल्यों को दकियानूसी मानते हैं उसी की उपेक्षा से ये परिस्थितियां पैदा हुई हैं … आधी आबादी के साथ हो रहा अत्याचार ” अत्यधिक चिंतनीय हैं ..यदि आप भारतीय सन्दर्भ में इसके मूल कारकों की खोज करना चाहते हैं तो आपको भारतीय मूल्यों के ऐतिहासिक उन्नयन और उस पर विदेशी आक्रमणों के प्रभाव का अध्ययन करना ही होगा. वहीँ पर इसका मूल निहित है और वहीँ पर समाधान भी.800 सालों से चल रहे विदेशी आक्रमणों और षड्यंत्रों के प्रभाव से शिक्षा और समाज दोनों अलग -अलग रास्तों पर जा रहे हैं … और सामाजिक सक्रियता ख़त्म हो गयी है … जब मुख्यधारा में विदेशी प्रभाव इस कदर होंगे तो मुख्यधारा की दशा और उसमे व्यक्ति का अस्तित्व नगण्य हो जाता है … … देश की सांस्कृतिक विरासत ने काम (सेक्स … वात्सायन का कामसूत्र ) और प्रेम के जो सिद्धांत दिए हैं उनको आप दकियानूसी मन लेते हैं तो फिर आप दोष किसे देते हैं … भारतीय इतिहास में प्रेम कभी अपराध नहीं रहा है (इसका एक विभ्रंश रूप ‘ऑनर किल्लिंग ‘ है लेकिन इसके किसी विरोधी ने जहमत नहीं उठाई की यह क्या है और क्यों हुआ ? ) शायद ऐतिहासिक विवेचन और मानव व्यव्हार के अध्ययन से इसके विरोध कि शुरुआत होनी चाहिए थी…. . कानून तो बहुत हैं लेकिन सवाल यह हैं कि आप किसी व्यक्ति के मन पर कौन से कानून से नियंत्रण कीजियेगा ..? मन पर नियंत्रण मूल्य आधारित शिक्षा से होगा , उन कारकों के वैज्ञानिक विश्लेषण से होगा जिनको आप दकियानूसी मान के छोड़ देना चाहते हैं .. हामारी करोड़ों वर्ष पुरानी सभ्यता में कभी नारी -शक्ति के साथ अत्याचार नहीं हुए … इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो इसके लिए निम्नलिखित सुझाव हैं ..
1. आज की सामाजिक दुर्दशा गुलामी एवं पश्चिमी प्रभावों की देन है .. देश की मूल सांस्कृतिक विरासत को शिक्षा में समाहित किया जाये ..
2. स्थानीय प्रशासन का सशक्तिकरण करके ऐसी घटनाओं में पीडिता को त्वरित न्याय दे सकने में समर्थ बनाया जाये . FIR दर्ज करना प्रशासन के नैतिक कर्तव्यों के साथ सेरविसे रूल बुक में लीगल तौर पर शामिल किया जाये . ताकि पीडिता को दर -दर भटकना न पड़े .
3. पीडिता के मनोपचार और पुनर्वास हेतु विशेषज्ञों का एक स्वतंत्र पैनेल (जिसमे कम से कम एक डॉक्टर, मनोवैज्ञानिक, अपराध विज्ञानं विशेषज्ञ,परामर्श विद. न्यायिक कार्याधिकारी , पुलिस का प्रतिनिधि , मीडिया प्रतिनिधि, और स्थानीय जनप्रतिनिधि शामिल हों. ) हर स्थानीय प्रशासन की इकाई में शामिल किया जाये ताकि न्याय में देरी और न्यायिक प्रक्रिया में पीडिता हताशा का शिकार न हो . न्याय में देरी न्याय न मिलने के बराबर है.
4. बाल -मष्तिष्क पर अभद्र दूरदर्शन कार्यक्रमों का असर ऐसी घटनाओं के लिए नकारात्मक प्रेरण की भूमिका निभाता है .. इसके लिए कार्यक्रमों को आयु समूह के अनुसार प्रदर्शित किया जाये .
5. महिलाओं के साथ सद्व्यवहार करने वाले कर्मचारियों को समयांतर में सम्मानित करने से समरसता को बढ़ावा मिलेगा .
6. सामान्य स्थानों (पार्क , रेस्टोरेंट इत्यादि .) में हो रहे प्रेमालाप से जन मानस पर सदैव नकारात्मक प्रभाव होता रहा है . इसे सख्ती से रोका जाये . इस प्रकार के प्रयास से ऐसे स्थानों पर होने वाली छेड़ -छड की घटनाओं पर निश्चित रूप से अंकुश लगाना संभव होगा .
7. स्थानीय प्रशासन में सामाजिकी और मानविकी के विशेषज्ञों का स्थायी तौर पर स्वतंत्र नियुक्ति हो ताकि उनके सहयोग से ऐसी घटनाओं के की समीक्षा एवं पारिस्थितिकीय कारकों को खोज कर उसकी पुनरावृत्ति रोकी जा सके .
8. स्थानीय प्रशासन को पीडिता के परिवार की यथासंभव मदद मानवीय सन्दर्भों में करनी चाहिए , शासन से अपेक्षा है की वह सर्वश्रेष्ठ चिकित्सकीय सुविधा से पुनर्वास तक का जिम्मा उठाये .
9. प्रेम प्रसंगों या विवाहोपरांत इस प्रकार की घटनाओं को काउंसिलिंग या परिवार न्यायालय के स्तर से सुलझाने का प्रयास सराहनीय होगा . स्थितियां गंभीर हों तो सामान्य न्याय प्रक्रिया उचित हो सकती है .
10. बदले की भावना में लगाये गए आरोपों , शासन प्रणाली के सदस्यों , डॉक्टरों और न्यायाधिकरण के सम्मानित सदस्यों द्वारा किये गए संदर्भित अपराधों को एक श्रेणी में रख के सख्त से सख्त सजा दी जाये .
12. सभी घटना पत्रों को व्यवस्थित और लिपिबद्ध करके स्वतंत्र पुनर्विवेचन के लिए सर्व सुलभ किया जाये .
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