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मै अन्ना आन्दोलन (IAC) के खिलाफ क्यों?

राकेश मिश्र कानपुर
राकेश मिश्र कानपुर
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जुझारू और समर्पित गाँधीवादी अन्ना हजारे के नाम पर देश के जनमानस को भ्रष्टाचार के विरुद्ध जो सामान्य ज्ञान दिया गया या दिया जा रहा है,  मै उसके लिए धन्यवाद देना चाहूँगा. यद्यपि भ्रष्टाचार देश की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है है फिर भी  मै इंडिया अगेंस्ट करप्शन  के आन्दोलन के खिलाफ हूँ..चलिए मै आप लोगों को अपने कुछ क्लू देता हूँ आप अन्ना के आन्दोलन को मुझे समझाने का प्रयास कीजियेगा … शायद मेरी बुद्धि  सच में खुल जाये..

1. एक बहुत नामी गिरामी अंतर्राष्ट्रीय संस्था भ्रष्टाचार के तथाकथित ठोस सर्वेक्षण लेकर आती है.
२. लोकतान्त्रिक सरकार सभी सामाजिक संस्थाओं को एक अनिवार्य औडिट के लिए आशय  जारी  करती  है.. सरकार की मंशा सामाजिक संस्थाओं के अंतर्गत होने वाले भ्रष्टाचार का समाधान करने के लिए नियमितता सुनिश्चित करने की थी.(इस आन्दोलन में ज्यादातर  देशी-विदेशी  एनजीओ ही धमाचौकड़ी  काटे हैं..? )
३. बहुत से विदेशी एनजीओ या उनके प्रतिनिधि हमारे देश के कई विदेशी दृश्य श्रृव्य मीडिया में अंशधारिता रखते  हैं. क्या इसीलिए हमारे  मीडिया कि प्राथमिकतायें बदल गयीं? देश कि तमाम दूसरी समस्याओं कि तुलना में जादू की छड़ी ही सबसे बड़ा हथियार और उसको बनाने वाले भारत भाग्य विधाता नज़र आने लगे ?
4.बहुत सारे टॉप कार्पोरेट प्रधानमंत्री को भ्रष्टाचार के लिए अलग-अलग एक पत्र लिखते हैं.. जनवरी १७,२०११ (लेकिन पत्र किसी समाचार पत्र या चैनल में प्रकाशित नहीं होते हैं… प्रकाशित हुए आज से लगभग  एक सप्ताह  पूर्व …?)
5. सच तो यह है की जुझारू गाँधीवादी अन्ना ने स्वयम  प्रत्यक्षतः जन लोकपाल बिल को तैयार नहीं किया है. तथाकथित “सिविल सोसाइटी” ने इसे क्यों  बनाया और  किसके  कहने पर बनाया यह मुझे अन्वेषण का विषय नज़र आता है.
६. इतने दिनों से चल रहे इस आन्दोलन का आधार सिर्फ एक जादू की छड़ी लोकपाल ही है और मै दावा करता हूँ की इसके लिए कराये गए जनमत संग्रह में मत देने वाले से आप जा के पूछ लीजिये तो वह खुद ही इसकी कलाई खोल देगा की वह जादू की छड़ी के बारे में क्या जानता है…?
७. क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है कि इतने दिनों से चल रहे भ्रष्टाचार के अन्वेषण  और संस्थागत प्रयास या तो लगभग बंद हो गए हैं या मीडिया कि प्राथमिकता से नदारद…?
हम तो नौ नगद को तेरह उधर से ज्यादा बेहतर मानते हैं. जो हाथ में है उसको ही सही से निपटा लीजिये. जादू कि छड़ी जब मिलेगी तब मिलेगी.
८. क्या यह आश्चर्य नहीं है की जिन राजनैतिक दलों को IAC ने पहले आन्दोलन में दूर से ही भगा दिया था वे ही IAC के आंदोलनों में जगह-जगह प्रमुख भागीदार हैं.?
९. क्या यह आश्चर्य नहीं की आन्दोलन से पूर्व अमेरिका का बयान आया और वह IAC की छवि को ही महिमामंडित करता है. ?
इस आन्दोलन का आधार सिर्फ एक जादू की छड़ी लोकपाल न होकर अगर कैग (CAG) की रिपोर्ट, जनसूचना अधिकार के लिए जागरूकता, या जन-जनसेवक संवाद  जैसे  स्थापित स्तंभों पर होता तो एक बड़ा वर्ग देश में खड़ा हो सकता था जिसको एक लोकतंत्र  में अपनी हैसियत का अंदाज़ा होता. लेकिन अभी जो भी इस तथाकथित आन्दोलन में मीडिया जनित देशभक्ति से लगे हैं क्या वे व्यक्तिगत सन्दर्भ में भ्रष्टाचार या भ्रष्टाचार से सम्बंधित   कोई   अनुसन्धान   करना   चाहेंगे?
अन्ना तो बेचारे बहुत सज्जन और दिल के बहुत नेक व्यक्ति हैं. तन मन देश सेवा में समर्पित करके  दुनिया के लिए सच्चे गांधीवाद का आदर्श प्रस्तुत किया है. लेकिन तार्किक और गैर तार्किक चर्चाओं का नतीजा इस प्रकार के आन्दोलन ही क्यों? मुख्यधारा  की राजनीति भी इसके समाधान में सहयोग हो सकती थी. देश के जनादेश की मुख्यधारा पर भरोसा क्यों नहीं?

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