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खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश किसके भले के लिये ?

राकेश मिश्र कानपुर
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खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश किसके भले के लिये ?

Courtesy: hastakshep.com

अमेरिकन कारपोरेट्स की भारत से अपेक्षाएं व नीतियों मे हस्तक्षेप से उठता राष्ट्रीय संप्रभुता का सवाल.

– राजेन्द्र हरदेनिया .

प्रधान मंत्री श्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में संपन्न केन्द्रीय मंत्रि परिषद की बैठक में गुरुवार 24 नवम्बर 2011 को भारत में मल्टी ब्रांड रिटेल ट्रेडिंग ( बहु मार्का खुदरा व्यापार) में एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश)  को 51 प्रतिशत की स्वीकृति देने के निर्णय से देश में भारी हंगामा हो रहा है। अभी तक हमारे देश में मल्टी ब्रांड रिटेल ट्रेडिंग में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रतिबंधित था। सिंगल ब्रांड रिटेल ट्रेडिंग (एकल मार्का खुदरा व्यापार) में सन 2006 में 51% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की स्वीकृति मिली थी, जिसे भी इस बैठक में बढाकर 100% कर दिया गया। इस निर्णय को सरकार यद्यपि एक ऐतिहासिक निर्णॅय बता रही है, लेकिन यूपीए के घटक दलों में भी इस निर्णय पर असहमति है, जबकि विरोधी दलों के तेवर काफी तल्ख हैं।

इस निर्णय की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में कुछ बिन्दु गौर करें। माह फरवरी 2011 में जब भारत के वित्तमंत्री श्री प्रणव मुखर्जी वर्ष 2011-12 का बजट संसद में पेश करने की तैय्यारी कर रहे थे बताया जाता है तब बजट प्रस्तुत करने के 10 दिन पहले उन्हें अमेरिका के कार्पोरेट्स की ओर से उनके संगठन के अध्यक्ष श्री रोन सोमर्स ने वाशिंगटन से 19 फरवरी को एक 11 पृष्ठीय ज्ञापन भेजा जिसमें कहा गया कि वित्तमंत्री उनकी संलग्न ‘अपेक्षा-सूची’ ( विश लिस्ट ) को बजट में शामिल करें, जिससे अमेरिकन कंपनियां भारत में सुगमता से व्यापार कर सकें। पीटीआई ने यह खबर 19 फरवरी 2011 को वाशिंगटन से जारी की थी। यह 11 पृष्ठीय ज्ञापन आंखें खोलने वाला है। भरोसा नहीं होता कि भारत जैसे संप्रभु राष्ट्र को अमेरिकी व्यापारियों का संघ भारत के सालाना बजट में कैसे अपनी शर्तें डलवा सकता है।

बताया जाता है अपेक्षाओं की लंबी सूची में बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा 49% करने की मांग की गई। इसी सूची में एक मांग भारत के खुदरा बाजार क्षेत्र में बहु-मार्का खुदरा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश उदारीकरण को लेकर थी। अभी तक खुदरा बाजार में बहु-मार्का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रतिबंधित था। इस प्रतिबंध को हटाकर 51 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देने की मांग की गई। इसके साथ ही एकल मार्का खुदरा में स्वीकृत 51 प्रतिशत की सीमा को बढाकर 100 प्रतिशत करने की मांग की गई। ज्ञापन में  बहुमार्का खुदरा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश उदारीकरण (मल्टी-ब्रांड रिटेल एफडीआई लिब्रलाईजेशन) के शीर्षक के अंतर्गत कहा गया है कि भारत में किसान और उपभोक़्ता को जोडने वाली कडी के लिये आपूर्ति श्रंखला के आधुनिकीकरण की जरूरत है। भारत के कृषि क्षेत्र में इन सुधारों अच्छी तरह से लागू करने के लिये यह अनिवार्य है कि निकट अवधि में मल्टी ब्रांड रिटेल सेक़्टर न्यूनतम 51% उदारीकृत किया जावे तथा मध्यम अवधि में एक ठोस योजना के साथ पूरी तरह 100% उदारीकरण किया जावे। इस ज्ञापन में अमेरिकन कार्पोरेट्स का भारत में जल्द से जल्द पूंजी निवेश के लिए जबर्दस्त उतावलापन दिखता है। भारत सरकार द्वारा जो निर्णय लिये जा रहे हैं तथा अमेरिकन कार्पोरेट्स की विश लिस्ट में उल्लिखित अपेक्षाएं हैं, वे कदमताल करते नजर आ रहे हैं। ऐसा लगता है जैसे उनकी इच्छा मात्र ही इनके लिये आदेश है। उस सूची में पहले मल्टीब्रांड रिटेल एफडीआई के लिये निकट अवधि में 51% की अपेक्षा की गई इधर अभी सरकार ने जस का तस 51% उदारीकरण का निर्णय ले लिया। एकल-मार्का में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को देश में पहली बार स्वीकृति यूपीए – 1 सरकार से सन 2006 में मिली थी तथा 51% की सीमा निर्धारित की गई थी। इस विश लिस्ट में उसे 51% की सीमा से बढाकर 100% की मांग की गई, सरकार ने उसे भी पूरा करने का निर्णय कर दिया। आज इस मल्टी ब्रान्ड रिटेल एफडीआई में 51% की स्वीकृति को लेकर बवाल मचा है। जब सरकार इस बवाल से पार पा लेगी तब अगले पडाव याने 51% की जगह 100% उदारीकरण का निर्णय लेने की तैय्यारी करेगी, क्योंकि अमेरिकन व्यापारियों की ऐसी ही अपेक्षा है। ये वो व्यापारी हैं जिनके पीछे व्हाइट हाउस का समर्थन बताया जाता है । आज तो सरकार को तात्कालिक हंगामे से निपटना है, तथा किसी भी हालत में निर्णय लागू करना है। ऐसा लगता है कि परदे के पीछे नीतिगत निर्णय अमेरिकन ले रहे है, व हमारी सरकार की भूमिका इस तरह क्रियांवित करने की है जिससे देश की जनता को हमेशा आभास हो कि ये निर्णय सरकार ले रही है।  कहा जाता है कि जागीरदारी प्रथा में जब जागीरदार की हवेली से गांव के मुकद्दम को हुकुम जारी होता था, कि लाचार गांव वालों से कोरे स्टाम्प पर अंगूठे लगवाकर लाओ तो मुकद्दम जागीरदार से यह कहते हुए कि हुजूर के लिये अपनी जान कुर्बान कर सकता हूं, हुकुम की तामील के लिये गांव वालों को समझा बुझा कर, लोभ-लालच देकर, डरा धमकाकर, मार-पीट कर किसी भी तरह छल या बल से उनके अंगूठे लगवाने  में जुट जाता था।  फिर यहाँ तो सबसे बडी हवेली व्हाइट हाउस का मामला है। याद होगा कि हमारे माननीय प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह अमेरिका की न्यूक्लियर डील पर अपनी यूपीए – 1,  सरकार को कुर्बान करने तैय्यार थे।

उल्लेखनीय है कि सन 1999 में एनडीए सरकार ने पहली बार बीमा के क्षेत्र में 26 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के दरवाजे खोले थे। यूपीए- 1 के कार्यकाल के दौरान अमेरिकन कार्पोरेट्स विदेशी पूंजी निवेश 49% करना चाहते थे व इसके लिये दबाव बनाते रहे, लेकिन सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे भारत के वामपंथियों के कारण उनकी दाल नहीं गली। अब यूपीए – 2 में यह सरकार वामपंथियों के दबाव के परे है, जिसका फायदा अमेरिकन कार्पोरेट्स ने उठाया। इस विश लिस्ट में वर्तमान एफडीआई 26% से बढाकर 49% करने की मांग की गई। सरकार ने इसे भी पूरा कर दिया।

आज एफडीआई के पक्ष में जो तर्क कार्पोरेट अमेरिका ने उस पत्र में दिये हैं सरकार उन तर्कों को दुहरा  रही है। आज सरकारी प्रवक्ता जो बोल रहे हैं ऐसा लगता है कि उसकी पटकथा कार्पोरेट अमेरिका ने लिखी है। जैसे भारत में महंगाई का दोष भारत के व्यापारियों के सिर पर मढते हुए पटकथा में लिखा गया व प्रवक्ता द्वारा बोला जा रहा हैं कि अनावश्यक एवं खर्चीले बिचौलियों के कारण खाद्य सामग्री में बेतहाशा महंगाई बढी है। अंतर्राष्ट्रीय खुदरा व्यापारी भारत को काफी लाभ पहुंचाएंगे। कोल्ड स्टोरेज और कोल्ड चेन परिवहन में भारत में तकनीक का आभाव या पूंजी निवेश की कमी की वजह से भारतीय किसान जो कुछ पैदा करते हैं उसमें से 20 से 40% खराब हो जाता है। किसानों की मदद करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय खुदरा व्यापारी अपने अनुभव, तकनीक तथा निवेश लाने के लिये तैय्यार बैठे हैं, लेकिन इसके लिये एफडीआई का उदारीकरण चाहिये।

हम एक स्वतंत्र, संप्रभुता संपन्न राष्ट्र हैं। सवाल उठता है कि क्या हम अपने निर्णय करने के लिये स्वतंत्र नहीं हैं? क़्या यह हमारी राष्ट्रीय संप्रभुता को चुनौती नहीं है? एक और सवाल है कि जब वाशिंगटन से वित्तमंत्री को यह ज्ञापन भेजा गया तब जिम्मेदारी का दावा करने वाली विपक्षी राजनैतिक पार्टियां सक्रिय नहीं हुईं। ज्ञापन मिलने दे बाद सरकार ने इसके लिये कमेटी बनाई, डिसकशन पेपर जारी किया, उसकी रपट तैय्यार कराई। ऐसे कुछ गंभीर दिखने वाले उपक्रम किये गये। फिर भी उस समय न तो विपक्षी पर्टियां सक्रिय हुईं, न ही देश का वह व्यापारी वर्ग जिसकी गर्दन पर तलवार लटक रही है।

राजेन्द्र हरदेनिया,

पिपरिया
जिला होशंगाबाद म.प्र.

email < rajhardenia@gmail.com>

http://hastakshep.com/?p=1570

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