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विदेशी पैसे से पल रहे एन.जी. ओ. शायद यही मानते है हैं की देश का भला या तो विदेशी कर्ज या विदेशी कंपनियों से होगा या विदेशी दानवीर कर्णों से. यह कितना उचित है?
कबीरा खड़ा बाजार में मांगे सब की खैर ना कहू से दोस्ती ना कहू से बैर !!
एस.पी.सिंह, मेरठ
चूँकि कोई भी व्यस्क व्यक्ति अगर वह किसी विचार धारा से प्रभावित ( राज नीतिक ) नहीं है तो वह किसी के पक्ष या विपक्ष से कैसे सम्बंधित हो सकता है क्या इस देश में कोई व्यक्ति तटस्थ नहीं हो सकता या फिर उसे अपने विचार प्रकट करने के लिए किसी न किसी राजनितिक पार्टी की सदस्यता लेना आवश्यक है ? मैं इसको सही नहीं मानता | यह बात और है की अगर मैं किसी आन्दोलन का समर्थन नहीं करता तो इसका मतलब यह तो नहीं है की मैं उस आन्दोलन का विरोधी हूँ या मैं आलोचनात्मक कोई विचार प्रकट कर रहा हूँ तो मैं विरोधी हूँ ? यह विचार ही मुझे यह सोचने पर मजबूर कर रहे हैं की जिन लोगों ने भी मेरी आलोचना या भर्त्सना की या गाली गलोच की उनमे से किसी ने भी यह नहीं कहा की मेरे लेखों यह टिप्पणियों के तथ्यों में गलती थी लोग आगबबुला इस लिए हुए के लेखों में समर्थन नहीं था – अब तो सब कुछ सबके सामने है आईने के समान वे सब लोग अब अपना चेहरा स्वयं ही देख सकते है.
मैंने काफी चिंतन करने के पश्चात यह महशुस किया कि जागरण फोरम पर अधिकतर पाठक बंधू या टिप्पणी करने वाले पर्बुद्ध सज्जन लोग केवल एक पार्टी विशेष के फेवर में लेखों या टिप्पणियों को पसंद करते है विरोध में या तटस्थ लेखों या टिप्पणियों पर आगबबुला हो कर अनर्गल प्रलाप करते हुए गाली गलोज पर उतर आते है यह तो कोई उचित बात नहीं है ? चूँकि जैसा की महा कवि कबीर दास ने कहा है ” निंदक नियरे रखिये आँगन कुटी छावय | बिन पानी बिन तेल के निर्मल करे सुहाय || तो मेरे लेख और टिप्पणियां भी कबीर से प्रभावित हैं ?
चूँकि मेरे लेखों और टिप्पणियों में मेरी अपनी सोच और विचार जो मेरे अपने स्वयं के है जो कि मेरी अपनी शिक्षा, संस्कार, एवं सरकारी नौकरी प्रशासनिक अनुभव और सार्वजनिक जीवन के अनुभव पर आधार्रित होते है वह न तो किसी के विरोध में होते है और न ही किसी के फेवर में वह केवल तटस्थ श्रेणी में होते है लेकिन आपके फोरम के लोगों को पसंद नहीं आते तो ऐसे लेखों को लिखने का औचित्य क्या है ?
चूँ वर्तमान में सर्वश्री बाबु राव उर्फ़ अन्ना हजारे एवं राम सेवक यादव उर्फ़ योग गुरु बाबा राम देव के विषय में मैंने जो कुछ भी लिखा था या लिख रहा हूँ वह शतप्रतिशत अभी तक सही साबित हुआ है – तो मै इस असमंजस में हूँ कि मैं अब क्या करूँ इस लिए आज दिनांक १६ जुलाई २०११ को मैं यह पोस्ट लिख रहा हूँ
श्री बाबु राव हजारे उर्फ़ अण्णा हजारे के आन्दोलन के विषय में मेरे अपने विचार यह थे, चूँकि हम वर्तमान में विश्व की सबसे बड़ी लोकतान्त्रिक/जनतांत्रिक व्यस्था में रह कर जीवन यापन कर रहे है ? यह शासन व्यस्था संसदीय चुनाव प्रणाली पर आधारित है जिसमे २८ प्रदेशो सहित कुछ केंद्रीय शासन के आधीन राज्य और एक केंद्रीय सरकार के द्वारा सम्पादित होते है? कुछ कानून संसद बनती है और कुछ राज्य के विषय के क़ानून राज्य सरकारों के द्वारा बनाये जाते है जो एक निश्चित प्रक्रिया के द्वारा ही संभव हो सकता है इसी कारण अण्णा हजारे के आन्दोलन के विषय में मेरे जो भी लेख/ टिपण्णी थे वह इन्ही विचारों पर आधारित थे और जिसमे मेरा अब भी यह मानना है कि कोई व्यक्ति या समूह आन्दोलन के द्वारा सार्वजनिक महत्त्व कि बातों को सरकार के सामने रख तो सकता है लेकिन कानून नहीं बना सकता कानून बनाने का काम सरकार का है और उसे बहस के द्वारा पास करने का हक़ केवल संसद को ही है संसद के अतिरिक्त किसी को नहीं ? तो यहाँ देखने वाली बात केवल यह है की क्या हमारे जन प्रतिनिधि ( एम् एल ए या सांसद ) अपना कार्य सुचारू रूप में कर रहे है ? हाँ यह सच है हमारे जन प्रतिनिधि अपना कार्य नहीं कर रहे है तभी तो समाज के प्रबुद्ध लोगों को आन्दोलन की राह पर चलने को मजबूर होना पड़ रहा है | अगर जन प्रतिनिधि अक्षम है तो उन्हें त्याग पात्र देकर जनता के साथ आन्दोलन की राह में चलाना ही श्रेयकर है न की चोरों की तरह पीछे से यह छद्म रूप से आन्दोलन का समर्थन करे ? मैं श्री अण्णा हजारे के आन्दोलन के विरुद्ध या उनके व्यक्तित्व के विरुद्ध कभी नहीं रहा और न ही ऐसा सोच सकता हूँ ? श्री अण्णा हजारे स्वयं एक कोमल और निर्मल हृदय के व्यक्ति है जो अपने लिए कुछ नहीं करते केवल समाज की सेवा की ही बात करते है अब चाहे वह रालेगन सिद्धि की बात हो या महाराष्ट्र के भ्रष्टाचार की बात हो लेकिन कुछ स्वार्थी और व्यस्था से असंतुष्ट (ब्यूरोक्रेट्स) लोगों के समूह और कुछ चुनाव में बुरी तरह से जनता के द्वारा ठुकराई राजनैतिक पार्टियों ने श्री अण्णा हजारे को केवल मोहरा बना के जंतर मंतर एक आन्दोलन के रूप खड़ा कर दिया यहाँ तक तो ठीक था लेकिन यह जिद करना की हम भी कानून बनाने की प्रक्रिया में भाग लेंगे कहाँ तक उचित है या था यह विषय अब इतिहास का विषय बन कर रह गया है जैसा की अण्णा हजारे ने स्वयं भी अनुभव किया होगा वह सभी नेताओं और पार्टियों के पदाधिकारियों के पास अपने जन लोकपाल कानून के लिए समर्थन मांगने के लिए गए लेकिन क्या मिला ? मेरे अपने आंकलन के अनुसार यही होना था जो मेरे लोखों में परिलक्षित हुआ था जो आज सच होता हुआ दिख रहा है – जैसे की सरकार ने घोषणा कर दी है की अब ड्राफ्टिंग कमेटी की कोई मीटिंग नहीं होगी केवल सरकार ही लोकपाल बिल का मसौदा संसद में पेश करेगी ? मेरी सारी सहनुभूति और समर्थन श्री अण्णा हजारे के साथ है भगवान् उन्हें दीर्घायु दे जिससे वे समाज सेवा की अपनी तपस्या को पूरा कर सके. ( उनके साथ जुड़े ड्राफ्टिंग कमेटी के लोगों के विषय में मेरे अपने विचार है जो फिर कभी प्रकट करूँगा ) लेकिन अभी (२६/१०/२०११) तक जो भी कुछ मिस्टर केजरीवाल के साथ हुआ है वह कुछ संक्षिप्त में इस प्रकार है (१) की कांग्रेश का विरिध करके उन्होंने अपने ऊपर जूते फिकवाए शायद यह प्रशिद्धि पाने का तरीका भी हो सकता है परन्तु गंभीर कारण कुछ और ही है वह यह की मीडिया की ख़बरों और केजरीवाल की खुद की स्वीकारोक्ति की मनीष सिसोदिया के साथ मिल कर जो ट्रस्ट “कबीर” वह चलते हैं उस ट्रस्ट को अमेरिका की किसी संस्था से चार लाख (4 ,00 ,000 ) अमेरिकी डालर मिले है अब यह तो जाँच के द्वारा ही पता चल सकता है की अमेरिका ने यह पैसा धर्मार्थ कार्यों के लिए दिया या देश में कांग्रेस हटाओ आन्दोलन चलने के लिए दिया
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